जीवन को जीना सीखा देगा ये प्रसंग हमारे अनेक स्वार्थों के कारण अनेक इच्छाओं के कारण अनेक आकांक्षाओं के कारण ये भोगवादी जो रावण है न हमारे जीवन मे आया और हमारे जीवन से भक्ति मैया का अपहरण करके ले गया भोगवादी रावण के दस मुख है दस शीश है
जीवन को जीना सीखा देगा
काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह जैसे भयंकर भयंकर इस भोगवादी रावण के शीश है यह सभी शीश व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करते है यदि आपके जीवन में एक भी ये दुर्गुण में से एक भी दुर्गुण आ गया तो बाकी सभी अपने आप पीछे पीछे चले आते है एक दुर्गुण में ऐसा चुंबक लगा हुआ है कि एक दुर्गुण जैसे ही जीवन मे आता है बाकि सब अपने आप पीछे पीछे चले आते है और सबसे भयंकर दुर्गुण होता है काम
जो एक साथ दो – दो लेकर आता है जब काम की पूर्ति होती है, जब इच्छाओं की पूर्ति होती है जब कामनाओं की पूर्ति होती है तो मन मे लोभ बढ़ने लगता है कि यह मिल जाता अरे यह मिल जाता मन में लोभ को आपने बुलाया नही
लेकिन काम इतना बड़ा बलवान है इतना बड़ा शत्रु है कि काम के आते ही इच्छाओं का लोभ अपने आप जीवन मे आ जाता है और एक होता है क्रोध जब आपके काम की पूर्ति न हो आपकी इच्छाओं की पूर्ति न हो रही हो आपके मनोरथ पूरे न हो रहे हो तो व्यक्ति क्रोधित होने लगता है
चिढ़चिढ़ा होने लगता है उसको चिढ़ मचने लगती है वह सभी पर क्रोध करने लगता है तो यह काम कितना भयंकर दुर्गुण है जब काम जीवन में आता है तो लोभ अपने आप पीछे पीछे चला आता है और क्रोध भी अपने आप आ जाता है अब इस काम से देखो बच तो नही सकते है
क्योंकि यह सब बनाया है तो भोग के लिए बनाया है लेकिन हमें कहां भोग करना है किस मात्रा मे यह चीज हमे सिखाती है भगवान की कथा हमे जीवन को संयम में रखना सिखाती है भगवान की कथा
काम से बचने का उपाय
काम आज के समय में बलवान है आप सहज में इससे नही बच सकते है आप नाम कीर्तन, नाम जप , संतो के संग से इस काम को संयम में रख सकते है अगर आप ग्रहस्थ धर्म मे है तो आप इसका भोग कीजिए लेकिन धर्म और शास्त्रों की आज्ञा के अनुसार अगर आप धर्म के अनुसार कोई भी भोग करते है तो आप परिणाम में सुखी रहेंगे
सबसे बड़ी दुविधा की बात है की आप बलहीन हो चुके है इन कामनाओं और इच्छाओं ने आपको कमजोर बना दिया है थोड़ी सी इच्छा आपसे बड़े बड़े अपराध करा देती है आप न चाहते हुए भी गलत मार्ग में कदम रखते है इसका मुख्य कारण है अहंकार आप का अहम जब तक भगवान के गुरुदेव के श्री चरणों में समर्पित नही होगा तब तक आप क्रिया के भोगता और कर्ता बनते रहेंगे
क्रोध की उत्पत्ति
क्रोध की उत्पत्ति ही कामना से होती है कामना की जब पूर्ति नहीं होती तो भयंकर क्रोध का उत्पत्ति होती है धर्म और अधर्म का ख्याल अभी रहता है बस अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए बड़े बड़े अपराध करने में भी व्यक्ति को संकोच नहीं होता है आप बड़े से बड़े अपराध को सहजता से करते क्योंकि अंतकरण मलिन हो चुका है आप जितना अधिक नाम जप करेंगे उतना आप इस स्थिति से ऊपर उठते जायेंगे नाम जप में अपार सामर्थ्य है आप जो भी कार्य कर रहे उसको करते करते नाम स्मरण बनाए रखे आप इन सभी विकारों से बच जायेंगे यह आपके जीवन को प्रभावित नही कर पाएंगे